मुबारक हो।
सूखी घास के ढेर को शरारा मुबारक हो,
अंधो को रोशनी का नजा़रा मुबारक हो।
किसने उँडेल दी है कालिख आसमाँ पर,
गर्दिश मे डुबता वो सितारा मुबारक हो।
पाँव निकल पडे तो रास्ते अपाहिज हो गये,
लो बैसाखियो का सहारा मुबारक हो।
फूलो के सर क़लम कर दिये पत्तो की धार ने,
अहल-ए-चमन को लहू का फुहारा मुबारक हो।
दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी यही बहुत है,
सिकंदरो को अब जहान सारा मुबारक हो।
6 comments:
डाक्साब - माला मराठी येत नाय - परन्तु
"आने से आप के गर्म महफ़िल सी हो गई
अहसास में एक और भपारा मुबारक हो
.. इस आगमन को अस्सलाम हमारा मुबारक हो
- लिंक फिर से नीचे लिखा है सादर- manish
http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/10/071010_nida_column.shtml
भाई मनीष,
आपकी हौसला अफ्जाई का शुक्रिया।
वाह वाह क्या कहने। आपको पढना अच्छा लगा।
ztpeफूलो के सर क़लम कर दिये पत्तो की धार ने,
अहल-ए-चमन को लहू का फुहारा मुबारक हो।
बहुत सुंदर श्री कृष्ण जी...बधाई...
नीरज
dard hidustani जी(पंकज अवधिया)
और
नीरज गोस्वामी जी
आपका सराहना
और अच्छा लिखने के लिये
उर्जा प्रदान करता रहेगा ।
बहुत बहुत शुक्रिया।
Mubarak Ho!
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