शुभेच्छा : दिवाळी २०११

शुभेच्छा : दिवाळी २०११

तमा नाही अंधाराची
एक पणती लावूदे;
फार वाटते एकटे
हात हातात राहूदे.

इवल्याशा पणतीने
दूर पळतो अंधार;
लढणा-या माणसाला
देते शुभेच्छा आधार.

*श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक*

प्रदीर्घ आणि मौलिक मराठी गझललेखनाकरिता बांधण जनप्रतिष्ठानच्या जीवनगौरव पुरस्काराने सन्मानित ज्येष्ठ गझलकार श्रीकृष्ण राऊत यांच्या गझलांविषयी वाचा श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक येथे *श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक* वाचा

09 January, 2008

ग़ज़ल

हर मुश्किल का हल हो जैसे
आज नही तो कल हो जैसे


आबाद हो गयी दिल की दिल्ली
घर छोटासा, महल हो जैसे


मीठी मीठी बाते उसकी
पके आम के फल हो जैसे


सूना सूना लगे भीड मे
शहर नही जंगल हो जैसे


यही ठहरती सुई घडी की
तेरी याद का पल हो जैसे


मेरे ऐब भी प्यारे तुझको
तू माँ का आँचल हो जैसे

8 comments:

अमिताभ मीत January 9, 2008 at 3:40 AM  

बहुत अच्छी लगी. ख़ास कर के ये :
हर मुश्किल का हल हो जैसे
आज नही तो कल हो जैसे
इस शेर ने मन मोह लिया है राउत साहब. शुक्रिया

नीरज गोस्वामी January 9, 2008 at 3:59 AM  

यही ठहरती सुई घडी की
तेरी याद का पल हो जैसे
bahut khoosurat alfaaz aur ehsaas se sazi behtareen ghazal.
Neeraj

पारुल "पुखराज" January 9, 2008 at 8:32 AM  

मेरे ऐब भी प्यारे तुझको
तू माँ का आँचल हो जैसे
waah.....khuubsurat panktiyaan...bahut sundar

Unknown January 9, 2008 at 11:05 AM  

डाक्साब - सही कहा शहर भी जंगल बने हैं - [ शब्द जोड़ कर यों ले आए, वरदा का परिमल हो जैसे ] rgds - manish

जेपी नारायण January 9, 2008 at 1:31 PM  

तू माँ का आँचल हो जैसे
...अंतिम पंक्ति वाकई वाह-वाह।

विनोद पाराशर January 18, 2008 at 8:35 AM  

बहुत ही बढिया गजल डा०साहब!

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