शुभेच्छा : दिवाळी २०११

शुभेच्छा : दिवाळी २०११

तमा नाही अंधाराची
एक पणती लावूदे;
फार वाटते एकटे
हात हातात राहूदे.

इवल्याशा पणतीने
दूर पळतो अंधार;
लढणा-या माणसाला
देते शुभेच्छा आधार.

*श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक*

प्रदीर्घ आणि मौलिक मराठी गझललेखनाकरिता बांधण जनप्रतिष्ठानच्या जीवनगौरव पुरस्काराने सन्मानित ज्येष्ठ गझलकार श्रीकृष्ण राऊत यांच्या गझलांविषयी वाचा श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक येथे *श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक* वाचा

18 January, 2008

ग़ज़ल

गली प्रेम की छूटी हम से, कहने को है बात ज़रासी
क़िस्मत अपनी रूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी

धीमे धीमे रही सुलगती दिल मे बस्ती अरमानो की
चिंगारी सी फूटी हम से, कहने को है बात ज़रासी

कहो आप ही कैसे निकले आख़िर सच्चे बयान अपने
क़समे ले ली झूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी

सरपर चढ़कर धूप नाचती,भाप बनाती ख़याल सारे
एक सुराही टूटी हम से कहने को है बात ज़रासी

3 comments:

भोजवानी January 18, 2008 at 12:52 PM  

एक सुराही टूटी हम से कहने को है बात ज़रासी

...त सुराही के आखिर में तोड़ी देहला, गजब।

Unknown January 20, 2008 at 11:11 AM  

बहुत खूब डा. साब - कबूल करें दाद ज़रा सी

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