ग़ज़ल
गली प्रेम की छूटी हम से, कहने को है बात ज़रासी
क़िस्मत अपनी रूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी
धीमे धीमे रही सुलगती दिल मे बस्ती अरमानो की
चिंगारी सी फूटी हम से, कहने को है बात ज़रासी
कहो आप ही कैसे निकले आख़िर सच्चे बयान अपने
क़समे ले ली झूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी
सरपर चढ़कर धूप नाचती,भाप बनाती ख़याल सारे
एक सुराही टूटी हम से कहने को है बात ज़रासी
क़िस्मत अपनी रूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी
धीमे धीमे रही सुलगती दिल मे बस्ती अरमानो की
चिंगारी सी फूटी हम से, कहने को है बात ज़रासी
कहो आप ही कैसे निकले आख़िर सच्चे बयान अपने
क़समे ले ली झूठी हमसे, कहने को है बात ज़रासी
सरपर चढ़कर धूप नाचती,भाप बनाती ख़याल सारे
एक सुराही टूटी हम से कहने को है बात ज़रासी
3 comments:
एक सुराही टूटी हम से कहने को है बात ज़रासी
...त सुराही के आखिर में तोड़ी देहला, गजब।
bahut bahut khub
बहुत खूब डा. साब - कबूल करें दाद ज़रा सी
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