बस इतना ही
रूक,
जरा रूक।
इस उच्चासन से रखने दे
मुझे पाँव
नीचे।
फिर
छूना उन्हे।
रहे
मेरे पाँव
ज़मीन पर हरदम
और
तेरा नत होना संपूर्ण।
बस
इतना ही
कहना है मेरा।
(मेरी मराठी कविता ‘दर्शन’ का अनुवाद)
रूक,
जरा रूक।
इस उच्चासन से रखने दे
मुझे पाँव
नीचे।
फिर
छूना उन्हे।
रहे
मेरे पाँव
ज़मीन पर हरदम
और
तेरा नत होना संपूर्ण।
बस
इतना ही
कहना है मेरा।
(मेरी मराठी कविता ‘दर्शन’ का अनुवाद)
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1 comments:
डा. साब - ये तो पीढियों की कहानी कह दी आपने !! - ज़मीन भी देखती है आ-समान भी ? - सादर - मनीष
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