ग़ज़ल
है वक़्त अभी भी संभल जा
इस दलदल से बचके निकल जा
नही निवाला मिलनेवाला
पानी के दो घूँट निगल जा
कहता है ये बदला मौसम
कल की मैली शकल बदल जा
किसी कुँवारे ख़याल की तरह
आकर दिल मे खूब मचल जा
उम्रभर न उलझ खिलौनो से
घडी दो घडी यूंही बहल जा
रूई जैसा दबता क्या है
दबे गेंद सा जरा उछल जा
4 comments:
bahut khub
नही निवाला मिलनेवाला
पानी के दो घूँट निगल जा
waah...bahut sundar bhaav
डा. साब - कुंवारे ख़याल का मचलना , फ़िर दबे गेंद सा उछालना - क्या पिरोया है - बहुत खूब - सादर -मनीष
आपका मराठी और हिंदी में अभिव्यक्ती अलग अलग तरीका है ।
आपकी "ग़ज़ल" बहोद पसंद आई । स्पेशल निकालने जैसा कोई शेर नहीं मिला । इसलिए पुरी ग़ज़लही कापी कर ली ।
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