शुभेच्छा : दिवाळी २०११

शुभेच्छा : दिवाळी २०११

तमा नाही अंधाराची
एक पणती लावूदे;
फार वाटते एकटे
हात हातात राहूदे.

इवल्याशा पणतीने
दूर पळतो अंधार;
लढणा-या माणसाला
देते शुभेच्छा आधार.

*श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक*

प्रदीर्घ आणि मौलिक मराठी गझललेखनाकरिता बांधण जनप्रतिष्ठानच्या जीवनगौरव पुरस्काराने सन्मानित ज्येष्ठ गझलकार श्रीकृष्ण राऊत यांच्या गझलांविषयी वाचा श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक येथे *श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक* वाचा

26 January, 2008

ग़ज़ल

है व‍क्‍़त अभी भी संभल जा
इस दलदल से बचके निकल जा


नही निवाला मिलनेवाला
पानी के दो घूँट निगल जा

कहता है ये बदला मौसम
कल की मैली शकल बदल जा

किसी कुँवारे ख़याल की तरह
आकर दिल मे खूब मचल जा

उम्रभर न उलझ खिलौनो से
घडी दो घडी यूंही बहल जा

रूई जैसा दबता क्या है
दबे गेंद सा जरा उछल जा

4 comments:

पारुल "पुखराज" January 26, 2008 at 8:51 AM  

नही निवाला मिलनेवाला
पानी के दो घूँट निगल जा
waah...bahut sundar bhaav

Unknown January 29, 2008 at 8:54 AM  

डा. साब - कुंवारे ख़याल का मचलना , फ़िर दबे गेंद सा उछालना - क्या पिरोया है - बहुत खूब - सादर -मनीष

Unknown May 28, 2008 at 11:33 AM  

आपका मराठी और हिंदी में अभिव्यक्ती अलग अलग तरीका है ।
आपकी "ग़ज़ल" बहोद पसंद आई । स्पेशल निकालने जैसा कोई शेर नहीं मिला । इसलिए पुरी ग़ज़लही कापी कर ली ।

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