शुभेच्छा : दिवाळी २०११

शुभेच्छा : दिवाळी २०११

तमा नाही अंधाराची
एक पणती लावूदे;
फार वाटते एकटे
हात हातात राहूदे.

इवल्याशा पणतीने
दूर पळतो अंधार;
लढणा-या माणसाला
देते शुभेच्छा आधार.

*श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक*

प्रदीर्घ आणि मौलिक मराठी गझललेखनाकरिता बांधण जनप्रतिष्ठानच्या जीवनगौरव पुरस्काराने सन्मानित ज्येष्ठ गझलकार श्रीकृष्ण राऊत यांच्या गझलांविषयी वाचा श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक येथे *श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक* वाचा

09 February, 2008

ज़रा सोचो

कभी ये दिन भी आयेगा ज़रा सोचो
कली को फूल खायेगा ज़रा सोचो


सभी को रौंदते निकला बेरहमी से
कहाँ पर रथ ये जायेगा ज़रा सोचो


मिलेंगे ना तुम्हे माने किताबो मे
तजुर्बा साथ लायेगा ज़रा सोचो


बचाओ रोशनी थोडी वफा़ओ की
घना अंधेर छायेगा ज़रा सोचो


नही है याद दिल्ल्ली को सम्राटो की
वो किसको याद आयेगा ज़रा सोचो


अगर तुम भी रहे मश्ग़ुल सियासत मे
ग़ज़ल को कौन चाहेगा ज़रा सोचो

2 comments:

Unknown February 16, 2008 at 10:57 AM  

डा. साब - ग़ज़ल के चाहने पर - दुष्यंत कुमार जी की रचनावली (चार भागों में) - किताबघर प्रकाशन से आ गई है - दिल्ली में श्रीराम सेंटर की दूकान से मैंने गए हफ्ते ली - सादर मनीष

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