शुभेच्छा : दिवाळी २०११

शुभेच्छा : दिवाळी २०११

तमा नाही अंधाराची
एक पणती लावूदे;
फार वाटते एकटे
हात हातात राहूदे.

इवल्याशा पणतीने
दूर पळतो अंधार;
लढणा-या माणसाला
देते शुभेच्छा आधार.

*श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक*

प्रदीर्घ आणि मौलिक मराठी गझललेखनाकरिता बांधण जनप्रतिष्ठानच्या जीवनगौरव पुरस्काराने सन्मानित ज्येष्ठ गझलकार श्रीकृष्ण राऊत यांच्या गझलांविषयी वाचा श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक येथे *श्रीकृष्ण राऊत विशेषांक* वाचा

15 March, 2008

ग़ज़ल

ना अता,ना पता
आदमी लापता

गुम हुई कब नदी
ऐ किनारे बता

हाल क्या गाँव का
क्या शहर जानता

खो चले स्कूल मे
बच्चे अपना पता

कर ज़रा सामना
दूर क्यों भागता

5 comments:

रवीन्द्र प्रभात March 15, 2008 at 11:06 PM  

छोटे बहर की बेहतरीन गज़ल!

Unknown March 16, 2008 at 12:57 PM  

बहुत खूब डाक्साब " ना अता,ना पता/ आदमी लापता" मैं पूछने ही वाला था - manish

Unknown March 21, 2008 at 12:59 PM  

डाक्साब प्रणाम - होली की समस्त शुभकामनाएँ सभी परिजनों के साथ - सादर - मनीष

Mahesh Savale September 20, 2008 at 5:40 AM  

helo sir this is mahesh here .........nice to see u..........and love to read ur poetry's here.........

Mahesh Savale March 15, 2009 at 7:05 AM  

कम से कम अल्फाज मे क्या कहि दास्ता ......वा क्या बात है......खो चले स्कूल मे बच्चे अपना पता..........बहोत खुब कही.....सीधी दिलपे लगी

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