रोटी के अजगर ने
रोटी के अजगर ने निगली हयात आधी
चबाली उसूलो ने बाकी हयात आधी
आज बाप को लटके देखा बेटी ने जब
दिल के दिल मे गयी लौटके बरात आधी
उसे मनाते पलके बोझल हुई चाँद की
करवट बदले रही जागती जो रात आधी
जुल्फे,रिश्ते,धरम,किताबे नाम कैद के
रिहा हुये तो हरदम पायी निज़ात आधी
भरी जवानी मे ये पड़ते कागज़ पीले
पढ़ते रहती टूटी फूटी दवात आधी
लगे अभी से रोने आँसू आप खून के
अभी सुनाई मैने तो वारदात आधी
4 comments:
कृष्ण जी आपकी ग़ज़ल पढ़कर मैं आपको अपने भाव नहीं लिख पा रहा हूं। कसम से बहुत अच्छी लिखी है। भगवान करे आप सदा अच्छा लिखते रहें और हम पढ़ते रहें। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ।
आपकी रचना मे वाकई एक दर्द भरी सचाई है....
बहुत उम्दा रचना है. बधाई.
अनामिक जी,डॉ.अनुराग आर्य जी,उडन तश्तरी जी
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद।
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